Friday, September 4, 2009
तू क्यों है?
तू क्या है?
तू किसकी है?
तू कहां है?
आखिरकार तू है, तो है किसके लिए?
क्या तेरे मायने है?
क्यों तेरे कदमों की आहट पे, दुनिया झूमती है?
क्यों तेरी चहलकदमी, सर –ए – बाजार है?
क्यों सभी को तूझसे इतना प्यार है?
क्यों तेरे जाने के संगुमान से ही जहां गमगीन और उदास होता है?
क्यो सब तुझे अपनाना चाहते है?
तू सबसे और सब तुझसे क्या चाहतें है?
समय मिलें तो मुझे जरूर बताना, मैं इंतजार में हूं।
Monday, August 31, 2009
ये दुनिया और हम, बहुत सारे सपने और मन में ट़ेर सारी उमंगें। ये उमंगों और सपनों का दौर ऐसा चलता है कि जिंदगी के बाद भी जारी रहता है। मजे की बात तो यह है कि सारी जिंदगी भी इन सभी को पूरा करने में लग जाती है और उससे भी ज्यादा मजे की बात यह है कि हमें पता भी नहीं, पते की बात तो छोड़िए जनाब, भनक भी तो नहीं पड़ती है।
ज्यादा ध्यान से देखने पर तो यह सब नुक्कड़ की दुकान पर रखी एक इमरती जैसा ही लगता है। देखते ही जीभ से पानी टपकना शुरू, गोल गोल, खौलते हुए तेल में अपने आप को जलाकर दूर तक माहौल को खुशबू से सराबोर कर देना। उसका रंग, आकार और स्वाद, सब कुछ ही तो ऐसा कि बस
“उम्म्म्म्, उठालो और खालो”
लेकिन मेरा मुकद्दर
कि कभी इमरती तो कभी साधन नहीं
और कभी साधन तो इमरती नहीं
Thursday, August 20, 2009
वो मरता है,
धीरे धीरे या तेजी से
ये एक अलग बात है,
क्योंकि कुछ न करने का मतलब है निष्क्रिय हो जाना
जो कुछ क्रिया ही नहीं कर रहा है
तो ---------- जीवन का क्या मतलब है
लेकिन सभी के जीवन में ऐसे मुकाम अक्सर आते रहते है
जैसा सुना है कि जीवन में हर चीज कुछ न कुछ सीखाती है
और निर्भर करता है कि आप सीखना क्या चाहते हो
या कहें कि
किसी भी बात को कैसे लेते हो,
क्योंकि जहां एक को शून्य दिखता है
या कभी कभी वह भी नहीं दिखता
कोई दूसरा वहां से अनंत भंडार पाता है।
तो कुछ न करना भी एक बड़ा काम है,
अतः आप से निवेदन है कि कुछ दिनों के लिए
या कुछ समय के लिए कुछ मत किजिए
और ये आनंद भी लिजिए।
मौसम बदल रहा है
पहले वाले बात नहीं रही
धूप में वो गर्मी तो है लेकिन
चिलचिलाहट नहीं है
बदन को कष्ट तो होता है
लेकिन उतना नहीं
और मजे की बात यह है
कि मौसम में एक अजीब सी
ठंडक सी महसूस होने लगी है।
ये ठंडक बहुत ही लंबे इंतजार के बाद नसीब हुई है
या कह सकते है कि तकलीफ के तो चार दिन भी
पहाड़ से लगते है।
ठंड का यह एहसास
कम्बख्त बड़ा ही रूमानी है
अंदर से अपने आप ही सिर उठाता रहता है।
अंदर की फसल को लहलहाता है
और हिलोरें लेने देता है।
मदमस्त कर देता है और सारी परेशानियां
कुछ पल के लिए ही सही परंतु
कहीं खो जाती है।
आज की नए आयाम छूती इस दुनिया में
जहां आदमी परेशानियां से बचने के लिए
इतने जतन करता है और फिर भी ------------------
तो आओं क्यों न हम कुदरत के इस तोहफे
का खुले दिल से इस्तकबाल करे।
दिल की गहराइयों से स्वागत किजिए
बसंत का और आगाज हो चुकी सर्दी का।
Wednesday, July 22, 2009
वो वक्त और लम्हें जो हमनें साथ साथ गुजारे,
आज सारे आंखों के सामने से हटने का नाम नहीं ले रहे हैं,
कोई तुम सा जो इनके सामने से गुजरा है अभी,
बंद भी नहीं हो रही है,
बस जो मंजर अभी था उसी को ता उम्र कैद करने की एक नाकामयाब कोशिश सी कर रही हैं,
चलो जो भी होगा देखा जाएगा,
इस जिद के आगे भला कौन है जो कि आएगा,
तुम तो पहले ही जा चुकी हो,
अब किसी से डर नहीं लगता,
अब मेरे इस मन को कोई नहीं फबता,
मैं ऐसा तो न था, तो क्यों हो गया हूं,
अगर तू ही है इसकी वजह तो ठीक है,
नहीं तो उम्र पड़ी है,
कोई और वजह तलाश लेंगे जी
Saturday, April 25, 2009
manदी में हालत है गंदी
सारा जमाना मांगे चंदा
कहां से दूं जब पास नहीं
मिलने की कोई आस नहीं
हालत और हालात
दोनों पे लग गई लात
सोच सोच के मैं तो हारा
अब कैसे होगा मेरा गुजारा
बात यहां तक तो ठीक थी भाई
आगे मुसीबत और गहराई
कमाई नहीं बस खर्चा है
काम मिलेगा, ऐसी केवल चर्चा है
इधर भटक उधर मटक
चप्पल, जूते गए चटक
पैरों के तलवे करते चड़ चड़
वक्त के कोड़े धड़ धड़ा धड़
ऐसे में कुछ भी नहीं सूझता
क्यों, कोई मुझसे नहीं पूछता
बिगड़े क्यों मेरे हाल है
इतनी फुर्सत किसके पास
अपनी मुफलिसी अपने साथ
chuनाव में भागीदारी
आजादी का माहौल है
चुनाव का बजा जो ढ़ोल है
इंतजार के पांच बरस
टूट गई जंजीरे पुरानी
अभी है मौका, दोस्तों
रच लो नई कहानी
सब कुछ अपने हाथ है
सब कुछ अपने साथ है
अब जो नहीं करा वोट
पांच साल वही पुरानी चोट
वक्त है सोचने और समझने का
निर्णय सख्त लेने का
खुश हो तो ठीक है
नहीं, तो वक्त है तख्ता पलटने का
Wednesday, January 28, 2009
ऐसा क्यों हुआ
सब खुशी से झूमें
बाहों में बाहें डाल के
सब के आंसू सब पोंछे
अपना रूमाल निकाल के
हर चीज का जवाब
प्यार से हो न कि तकरार से
दुखी हो पड़ोस में कोई
तो नींद मुझे कैसे आए
दाना न हो सामने की थाली में
तो मुझे निवाला कैसे भाए
सबके अंदर यह एहसास कहीं मर सा गया है
इसलिए यह जहां लाशों से भर गया है
मुझे आदम कर जाता है
तेरी पायल की छम छम
वो तेरी चूड़ी की खन खन
तेरी बिंदिया की वो चमक
और सबसे बड़ा
तेरे आने का वो एहसास
मेरे पास
मेरे अंदर एक दम सा भर जाता है
और मुझे आदम कर जाता है
एक तेरा एहसास
एक छुवन
एक तड़पन
एक तेरा एहसास
वो संग संग बातों का प्रयास
जारी है आज भी
तेरे जाने के बाद
तू नहीं तो तेरी तस्वीर के ही साथ।
अपने आप
संग थोड़े होश की
कुछ नया करने की
आँखों में ख्वाब भरने की
रचें बसे और समा जाएं
लहू बनके इन रगो में दौड़ें
कुछ हो कहीं भी कभी भी
मगर साथ न छोड़े
अटूट, अजर, अमर और अमिट
भावनाओं से जुड़कर
शिला पर लिखे कोई
अपना भी नाम प्यार से, सम्मान से।
Wednesday, January 7, 2009
इसकी सबसे यारी है
कौन है
और उसके संग कौन है?
क्यों छाया चारों ओर मौन है?
क्यों अंधेरा घनघोर है?
क्यों कोई आवाज मुझे सुनाई नहीं देती है
ऐसा क्या हो गया है
पता नहीं चल रहा है
क्या कोई मुझे बताएगा कि
उजियारा लेकर कौन आएगा
क्या किसी का इंतजार है
क्या सारे इंतजाम बेकार हुए है
कोई तो बता दो यार मेरे आंगन में कौन है
लगता है मेरे जाने की बारी है
ये तो भईया मौत है
जिससे सब की यारी है।
हर हाल में वादा निभाती है
सबको साथ लेकर जाती है।