Monday, December 29, 2008
क्या क्या ho नए साल में
न आज की न कल की
ये तो जिंदगी का फसाना है
जो उम्र भर गुन गुनाना है
न जाने कितने जा चुके है
एक और नया आ रहा है
जिसके आने की आहट से
सभी का मन मुस्कुरा रहा है
आओ, इसका स्वागत करे
देखो नया साल आ रहा है
क्या क्या हो, इस साल में
बचपन से जवानी, जनाने संग जनानी
सब के मन की बातें होगी
अब न काली रातें होगी
आने वाले साल में
हर बहना का भाई होगा
सबके संग साईं होगा
कहीं भी न रूसवाई होगी
आने वाले साल में
सबके मन में फूल खिलेंगे
सभी को ढ़ेरों नोट मिलेंगे
हर ख्वाहिश जो पूरी होगी
आने वाले साल में
दंगे वाला नंगा होगा
कहीं भी अब न पंगा होगा
सारा आलम चंगा होगा
आने वाले साल में
महंगाई और मारामारी
कहां जाएंगी ये बेचारी
होगी केवल खुशी की बारी
आने वाले साल में
झोला सीं लो और बड़ा
फल गिरेगा धड़ा धड़ा
प्यार करो और काम करो
मस्त रहो आराम करो
आने वाले साल में
नया नवेला साल
करने सबको माला माल
बहुत तेज है जिसकी चाल
रखो अपने को संभाल
और मौज करो
Saturday, December 20, 2008
सबका वक्त आता है
नया सवेरा
आने वाला
हर पल मेरा
दुख के कांटे
फूल बन गए
जो थे दुश्मन
गले मिल गए
चारों ओर
खुशियों का डेरा
यह एहसास कराता है
कि सबका वक्त आता है
मैं, मुझसे मिलूं पर कैसे
डाल हाथों में हाथ
चले संग संग
दूर, बहुत दूर
जहां साया भी साथ न हो
माया भी साथ न हो
काया की सुध न हो
और मन में आवाज न हो
बहुत दिन हुए
अपने से मिले
वो सारे शिकवे गिले
जो अपने से ही है मुझको
उनका हिसाब जो करना है
सारी सीमाओं से परे
बंधनों को तोड़कर
रिश्ते नातों को छोड़कर
बिना किसी ताने बाने के
बिना किसी रूकावट के
बिना किसी की आहट के
केवल मैं ही मैं
और कोई नहीं
और कुछ भी तो नहीं
सब कुछ बस “मैं”
ऐसा करने का मन करता है
अपने को छूने का मन करता है
ताकि, एहसास रहे मैं जिंदा हूं
लेकिन एक डर है मुझको
वो मंजर,
मुझको तोड़ न दे
मैं, मेरा दामन छोड़ न दूं
नफरत का ऐसा गुब्बार
दूसरों के लिए भी नहीं है
मेरे मन में
फिर जाने क्यों मैं अपने से
नफरत करता हूं
और मिलने से कतराता हूं।
Friday, December 19, 2008
नए साल का स्वागत
खुशियों से भरा
एक नया सवेरा
सबका, तेरा और मेरा
प्यार का दुलार का
इकरार का इंकार का
छेड़ का तकरार का
मीठे पल इंतजार का
बात का चीत का
हार और जीत का
गम और खुशी का
चहल संग पहल का
चांद संग चांदनी का
सूरज संग रोशनी का
बादल संग हवा का
तपन संग नमी का
और उसके संग
हमीं का
Tuesday, December 9, 2008
आंखों में अब ख्वाब नए हैं
सब कुछ नया नया सा है
दुनिया के इस मेले में
आओ शामिल हो जाएं
हम भी इस रेले में।
बातें हैं,
घर के आंगन द्वारों पे
बात नई और पुरानी
सुनकर होती है हैरानी
कुछ ऐसी जो ज्ञान बढ़ाएं
कुछ ऐसी जो मान बढ़ाएं
कुछ ऐसी जो चढ़ चढ़ आएं
कुछ ऐसी जो सुनी न जाएं
यूं ही चलती रहती है
कुछ न कुछ तो कहती है
सारी बात हमारे ऊपर
किस संग क्या क्या करना है?
घाव नए देने है या
पुरानों को ही भरना है
खुशी और मायूसी
किस संग किसका साथ
सब कुछ अपने हाथ
क्योंकि
बातें है
बातों का क्या?
Tuesday, November 11, 2008
तेरी अंधियारी झोली में,
एक नन्हा सूरज चमकेगा,
बात चलेगी काम बनेंगे,
तेरे दुपके नाम बढ़ेंगे,
वो नया सवेरा तेरा होगा,
वो पूरा सूरज तेरा होगा,
तेरे सूरज का उजियारा,
सबको राह दिखाएगा,
अंधियारा दर दर भटकेगा,
लेकिन जगह न पाएगा,
हर लहर उठेगी तेरे हक में,
हवा चलेगी तेरे मत में,
आसमान के तारें भी,
तेरे ही आंगन में झांकेंगे,
इन चारों दिशाओं में,
फैली हुई फिजाओं में,
रंग भी तेरे राग भी तेरे
गीत भी तेरे साज भी तेरे,
सब पर हक तेरा ही होगा
रुख और दिशा भी तेरे होंगे
कांटे वाले रस्तों पे भी फूल खिलेंगे
सब आकर तुझसे ही मिलेंगे
चांद भी तेरा सूरज भी
ये गगन भी तेरा, जमीं भी
हम भी तेरे, रब तेरा
बस होने ही वाला है
तेरा, एक नया सवेरा
Wednesday, October 22, 2008
जब तुम चलती हो
तो तमन्ना मचलती है
जब तुम रुकती हो
तो और भी ज्यादा
क्योंकि तुम पास आती जाती हो
तुम रूक जाती हो, मैं चलता हूं
कुछ और दिखाई नहीं देता
कुछ और सुनाई नहीं देता
कुछ सूझ नहीं पाता मुझको
सब कुछ बेकाबू लगता है
बात शुरू तो अब होती है
जाने ये घटना कब होती है
सूरज भी काम नहीं आता और अंधकार छा जाता है
इन आंखों से सब कुछ ओझल हो जाता है
कभी कभी दीदार तेरा नामुमकिन होता जाता है
सात समंदर से गहरी, ये आंखे भर जाती है
तुम्हरे पैरों की आहट से
पायल की प्यारी छम छम से
चोली, आंचल के घुंघरूओं की खनक से
यादों से उन वादों से
कसमों से उन बातों से
साथ गुजारे दिन और रातों से
खुशी के निर्मल भावों से
तुमसे मिलने की चाहों से
उन रातों से उन बातों से
साथ में सारे मंजर से
ये आंखें भर जाती है
उम्र गुजरती जाती है
बातें पुरानी जाती है
नई बातों को कहां समाऊं
कहां मैं इन आंखों को खाली कर आऊं
Saturday, September 13, 2008
Thursday, June 5, 2008
kuchh hai
sochta tu kya hai,
paisa, zindgi, pyaar or mera yaar,
lagta hai kabhi, hai sab kuchh bekar,
ye ek chakkar sa hai,
or main isme fasna nahi chahta,
isliye main hamesha door hi rahta hoon,
kabhi uske pass nahi jata.