Saturday, April 11, 2015

हिन्दू न होता, मुस्लमान न होता
तो भगवान तेरा भी नाम न होता

न करता पूजा अर्चना कोई, न कोई सजदे में सिर को झुकाता


तू तो बड़ा शातिर और चालाक निकला
फंसा के हमे सब फंदो में खुद तो भाग निकला

जा के छुप गया है अमरनाथ की गुफाओं में और मक्के की गलियों में

लापता की तलाश मेरे बस में नहीं
भर तो लूँ मैं भी वो दम मगर मजा इस कश में नहीं

मेट्रो में लड़कियां कमाल करती है
हाथों में कंघा और कंघे में बाल करती है

और बाद में लगा लिपस्टिक होठ लाल करती है

नंबर अब आईने का आता है,
बता ए आईने मेरा रंग रूप कितनो को भाता है

नज़रें अपने कदरदानों की तरफ उठती है और सारे जवान लौंडों की नज़र झुकती है

सिलसिला जारी रहता है इन बालाओं की अदाओं का