Thursday, August 20, 2009

अब लग रहा है कि

मौसम बदल रहा है

पहले वाले बात नहीं रही

धूप में वो गर्मी तो है लेकिन

चिल‌चिलाहट नहीं है

बदन को कष्‍ट तो होता है

लेकिन उतना नहीं

और मजे की बात यह है

कि मौसम में एक अजीब सी

ठंडक सी महसूस होने लगी है।

ये ठंडक बहुत ही लंबे इंतजार के बाद नसीब हुई है

या कह सकते है‌ कि तकलीफ के तो चार दिन भी

पहाड़ से लगते है।

ठंड का यह एहसास

कम्‍बख्‍त बड़ा ही रूमानी है

अंदर से अपने आप ही सिर उठाता रहता है।

अंदर की फसल को लहलहाता है

और हिलोरें लेने देता है।

मदमस्‍त कर देता है और सारी परेशानियां

कुछ पल के ‌लिए ही सही परंतु

कहीं खो जाती है।

आज की नए आयाम छूती इस दुनिया में

जहां आदमी परेशानियां से बचने के लिए

इतने जतन करता है और फिर भी ------------------

तो आओं क्‍यों न हम कुदरत के इस तोहफे

का खुले दिल से इस्‍तकबाल करे।

दिल की गहराइयों से स्‍वागत किजिए

बसंत का और आगाज हो चुकी सर्दी का।

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