Wednesday, January 28, 2009

ऐसा क्‍यों हुआ

सब खुशी से झूमें

बाहों में बाहें डाल के

सब के आंसू सब पोंछे

अपना रूमाल निकाल के

हर चीज का जवाब

प्‍यार से हो न कि तकरार से

दुखी हो पड़ोस में कोई

तो नींद मुझे कैसे आए

दाना न हो सामने की थाली में

तो मुझे निवाला कैसे भाए

सबके अंदर यह एहसास कहीं मर सा गया है

इसलिए यह जहां लाशों से भर गया है

2 comments:

अभिषेक मिश्र said...

सबके अंदर यह एहसास कहीं मर सा गया है

इसलिए यह जहां लाशों से भर गया है

sahi kaha aapne. Swagat.

दिगम्बर नासवा said...

सबके अंदर यह एहसास कहीं मर सा गया है
इसलिए यह जहां लाशों से भर गया है

बहुत खूब लिखा है.....लाजवाब