Wednesday, October 22, 2008

ऐसा शायद हो पाएंधर्म, जाति कहीं खो जाएभाषा पर भी अलगाव न होकोई शहर न हो, कोई गांव न होसब मिलकर दफन करे इन बातों को उन काली जहरीली रातों कोजिसमें कोई नहीं सोने पाया सब ने खोया, कुछ न पायाकिरणों से बात नहीं बनतीबात बनेगी किरण पुंज सेहम से तुम से

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