न कोई बात इस पल की
न आज की न कल की
ये तो जिंदगी का फसाना है
जो उम्र भर गुन गुनाना है
न जाने कितने जा चुके है
एक और नया आ रहा है
जिसके आने की आहट से
सभी का मन मुस्कुरा रहा है
आओ, इसका स्वागत करे
देखो नया साल आ रहा है
क्या क्या हो, इस साल में
बचपन से जवानी, जनाने संग जनानी
सब के मन की बातें होगी
अब न काली रातें होगी
आने वाले साल में
हर बहना का भाई होगा
सबके संग साईं होगा
कहीं भी न रूसवाई होगी
आने वाले साल में
सबके मन में फूल खिलेंगे
सभी को ढ़ेरों नोट मिलेंगे
हर ख्वाहिश जो पूरी होगी
आने वाले साल में
दंगे वाला नंगा होगा
कहीं भी अब न पंगा होगा
सारा आलम चंगा होगा
आने वाले साल में
महंगाई और मारामारी
कहां जाएंगी ये बेचारी
होगी केवल खुशी की बारी
आने वाले साल में
झोला सीं लो और बड़ा
फल गिरेगा धड़ा धड़ा
प्यार करो और काम करो
मस्त रहो आराम करो
आने वाले साल में
नया नवेला साल
करने सबको माला माल
बहुत तेज है जिसकी चाल
रखो अपने को संभाल
और मौज करो
Monday, December 29, 2008
Saturday, December 20, 2008
सबका वक्त आता है
नया सूरज
नया सवेरा
आने वाला
हर पल मेरा
दुख के कांटे
फूल बन गए
जो थे दुश्मन
गले मिल गए
चारों ओर
खुशियों का डेरा
यह एहसास कराता है
कि सबका वक्त आता है
नया सवेरा
आने वाला
हर पल मेरा
दुख के कांटे
फूल बन गए
जो थे दुश्मन
गले मिल गए
चारों ओर
खुशियों का डेरा
यह एहसास कराता है
कि सबका वक्त आता है
मैं, मुझसे मिलूं पर कैसे
नया जोश नई उमंग
डाल हाथों में हाथ
चले संग संग
दूर, बहुत दूर
जहां साया भी साथ न हो
माया भी साथ न हो
काया की सुध न हो
और मन में आवाज न हो
बहुत दिन हुए
अपने से मिले
वो सारे शिकवे गिले
जो अपने से ही है मुझको
उनका हिसाब जो करना है
सारी सीमाओं से परे
बंधनों को तोड़कर
रिश्ते नातों को छोड़कर
बिना किसी ताने बाने के
बिना किसी रूकावट के
बिना किसी की आहट के
केवल मैं ही मैं
और कोई नहीं
और कुछ भी तो नहीं
सब कुछ बस “मैं”
ऐसा करने का मन करता है
अपने को छूने का मन करता है
ताकि, एहसास रहे मैं जिंदा हूं
लेकिन एक डर है मुझको
वो मंजर,
मुझको तोड़ न दे
मैं, मेरा दामन छोड़ न दूं
नफरत का ऐसा गुब्बार
दूसरों के लिए भी नहीं है
मेरे मन में
फिर जाने क्यों मैं अपने से
नफरत करता हूं
और मिलने से कतराता हूं।
डाल हाथों में हाथ
चले संग संग
दूर, बहुत दूर
जहां साया भी साथ न हो
माया भी साथ न हो
काया की सुध न हो
और मन में आवाज न हो
बहुत दिन हुए
अपने से मिले
वो सारे शिकवे गिले
जो अपने से ही है मुझको
उनका हिसाब जो करना है
सारी सीमाओं से परे
बंधनों को तोड़कर
रिश्ते नातों को छोड़कर
बिना किसी ताने बाने के
बिना किसी रूकावट के
बिना किसी की आहट के
केवल मैं ही मैं
और कोई नहीं
और कुछ भी तो नहीं
सब कुछ बस “मैं”
ऐसा करने का मन करता है
अपने को छूने का मन करता है
ताकि, एहसास रहे मैं जिंदा हूं
लेकिन एक डर है मुझको
वो मंजर,
मुझको तोड़ न दे
मैं, मेरा दामन छोड़ न दूं
नफरत का ऐसा गुब्बार
दूसरों के लिए भी नहीं है
मेरे मन में
फिर जाने क्यों मैं अपने से
नफरत करता हूं
और मिलने से कतराता हूं।
Friday, December 19, 2008
नए साल का स्वागत
नए साल का आगमन
खुशियों से भरा
एक नया सवेरा
सबका, तेरा और मेरा
प्यार का दुलार का
इकरार का इंकार का
छेड़ का तकरार का
मीठे पल इंतजार का
बात का चीत का
हार और जीत का
गम और खुशी का
चहल संग पहल का
चांद संग चांदनी का
सूरज संग रोशनी का
बादल संग हवा का
तपन संग नमी का
और उसके संग
हमीं का
खुशियों से भरा
एक नया सवेरा
सबका, तेरा और मेरा
प्यार का दुलार का
इकरार का इंकार का
छेड़ का तकरार का
मीठे पल इंतजार का
बात का चीत का
हार और जीत का
गम और खुशी का
चहल संग पहल का
चांद संग चांदनी का
सूरज संग रोशनी का
बादल संग हवा का
तपन संग नमी का
और उसके संग
हमीं का
Tuesday, December 9, 2008
वक्त नया है, रोशनी नई हैबात नई, अलफाज नए हैगाते थे जो गीत नए हैबजते थे जो साज नए है लहर नई, उम्मीद नई हैदिल में उठी उमंग नई हैअंदाज नए और काज नए हैहाथों में अब हाथ नए है संग नए है साथ नए हैपूरन करने काज नए हैहम नए है आप नए है
आंखों में अब ख्वाब नए हैं
सब कुछ नया नया सा है
दुनिया के इस मेले में
आओ शामिल हो जाएं
हम भी इस रेले में।
आंखों में अब ख्वाब नए हैं
सब कुछ नया नया सा है
दुनिया के इस मेले में
आओ शामिल हो जाएं
हम भी इस रेले में।
बातें हैं,
गलियों पे चौबारों पे
घर के आंगन द्वारों पे
बात नई और पुरानी
सुनकर होती है हैरानी
कुछ ऐसी जो ज्ञान बढ़ाएं
कुछ ऐसी जो मान बढ़ाएं
कुछ ऐसी जो चढ़ चढ़ आएं
कुछ ऐसी जो सुनी न जाएं
यूं ही चलती रहती है
कुछ न कुछ तो कहती है
सारी बात हमारे ऊपर
किस संग क्या क्या करना है?
घाव नए देने है या
पुरानों को ही भरना है
खुशी और मायूसी
किस संग किसका साथ
सब कुछ अपने हाथ
क्योंकि
बातें है
बातों का क्या?
घर के आंगन द्वारों पे
बात नई और पुरानी
सुनकर होती है हैरानी
कुछ ऐसी जो ज्ञान बढ़ाएं
कुछ ऐसी जो मान बढ़ाएं
कुछ ऐसी जो चढ़ चढ़ आएं
कुछ ऐसी जो सुनी न जाएं
यूं ही चलती रहती है
कुछ न कुछ तो कहती है
सारी बात हमारे ऊपर
किस संग क्या क्या करना है?
घाव नए देने है या
पुरानों को ही भरना है
खुशी और मायूसी
किस संग किसका साथ
सब कुछ अपने हाथ
क्योंकि
बातें है
बातों का क्या?
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