मौसम के ये नजारे,
वो वक्त और लम्हें जो हमनें साथ साथ गुजारे,
आज सारे आंखों के सामने से हटने का नाम नहीं ले रहे हैं,
कोई तुम सा जो इनके सामने से गुजरा है अभी,
बंद भी नहीं हो रही है,
बस जो मंजर अभी था उसी को ता उम्र कैद करने की एक नाकामयाब कोशिश सी कर रही हैं,
चलो जो भी होगा देखा जाएगा,
इस जिद के आगे भला कौन है जो कि आएगा,
तुम तो पहले ही जा चुकी हो,
अब किसी से डर नहीं लगता,
अब मेरे इस मन को कोई नहीं फबता,
मैं ऐसा तो न था, तो क्यों हो गया हूं,
अगर तू ही है इसकी वजह तो ठीक है,
नहीं तो उम्र पड़ी है,
कोई और वजह तलाश लेंगे जी
Wednesday, July 22, 2009
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