मंदी में मंदा है धंधा
सारा जमाना मांगे चंदा
कहां से दूं जब पास नहीं
मिलने की कोई आस नहीं
हालत और हालात
दोनों पे लग गई लात
सोच सोच के मैं तो हारा
अब कैसे होगा मेरा गुजारा
बात यहां तक तो ठीक थी भाई
आगे मुसीबत और गहराई
कमाई नहीं बस खर्चा है
काम मिलेगा, ऐसी केवल चर्चा है
इधर भटक उधर मटक
चप्पल, जूते गए चटक
पैरों के तलवे करते चड़ चड़
वक्त के कोड़े धड़ धड़ा धड़
ऐसे में कुछ भी नहीं सूझता
क्यों, कोई मुझसे नहीं पूछता
बिगड़े क्यों मेरे हाल है
इतनी फुर्सत किसके पास
अपनी मुफलिसी अपने साथ
Saturday, April 25, 2009
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