जब तुम चलती हो
तो तमन्ना मचलती है
जब तुम रुकती हो
तो और भी ज्यादा
क्योंकि तुम पास आती जाती हो
तुम रूक जाती हो, मैं चलता हूं
कुछ और दिखाई नहीं देता
कुछ और सुनाई नहीं देता
कुछ सूझ नहीं पाता मुझको
सब कुछ बेकाबू लगता है
बात शुरू तो अब होती है
जाने ये घटना कब होती है
सूरज भी काम नहीं आता और अंधकार छा जाता है
इन आंखों से सब कुछ ओझल हो जाता है
कभी कभी दीदार तेरा नामुमकिन होता जाता है
सात समंदर से गहरी, ये आंखे भर जाती है
तुम्हरे पैरों की आहट से
पायल की प्यारी छम छम से
चोली, आंचल के घुंघरूओं की खनक से
यादों से उन वादों से
कसमों से उन बातों से
साथ गुजारे दिन और रातों से
खुशी के निर्मल भावों से
तुमसे मिलने की चाहों से
उन रातों से उन बातों से
साथ में सारे मंजर से
ये आंखें भर जाती है
उम्र गुजरती जाती है
बातें पुरानी जाती है
नई बातों को कहां समाऊं
कहां मैं इन आंखों को खाली कर आऊं
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