ऐसा शायद हो पाएंधर्म, जाति कहीं खो जाएभाषा पर भी अलगाव न होकोई शहर न हो, कोई गांव न होसब मिलकर दफन करे इन बातों को उन काली जहरीली रातों कोजिसमें कोई नहीं सोने पाया सब ने खोया, कुछ न पायाकिरणों से बात नहीं बनतीबात बनेगी किरण पुंज सेहम से तुम से
खुद को समझ पाना इतना आसन नहीं लगता, ये एक अनंत सा है। कभी तो सारी दुनिया की सच्चाई समझ में आ जाती है और अगले ही पल अपने में उलझ कर रह जाता हूं। इस दुनिया में कुछ भी न जानने वाले जिज्ञासु बच्चों के मन में उठते नित नए सवालों और पल पल में बदलते विचारों जैसा चलायमान मैं खुद को पाता हूं।
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