आज के चांद में कितने चेहरे है
जो तेरे है और मेरे है
देखने वाले तो अजीज है
हमारे दिल के करीब है
जिंदगी जिन के नाम है
सांसो पर भी उनका ही हक है
कहीं आंगन तो कहीं छत पर चढ़कर
चांद को देखती और अपना अपना मानकर बैठी
मेरी प्रेयसी,
छलनी के छेदों से छनकर आने वाली उस प्यारी सी चांदनी
को मेरा साया समझकर, उसमें खुद को तर बतर कर लेना चाहती है।
Tuesday, October 26, 2010
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