एक अंधेरी रात के अंधियारे से
तंहाई में मुलाकात की चाह है
कुछ मिला तो सही और न मिला
तो अपने से मिलने की राह है,
राह बहुत आसान
मगर भटकाव भी कम नहीं है
क्योंकि मन मेरा अटका हुआ तमाम चीजों में जो है
जब तक रौनक है और आस पास लोग है
तो पता नहीं चलता,
और जैसे ही अकेला होता हूं तो
डगमगा जाता हूं, थोड़ा कांप सा जाता हूं
इसलिए अपने आप से बचता हुआ और
स्वयं को तलाशता मैं
रात के अंधियारे से तंहाई में मुलाकात की चाह रखता हूं।
Tuesday, February 23, 2010
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