Wednesday, February 24, 2010

कुछ इस तरह से होली मनाएं।

लोगों के चेहरो पर रंग
घुलने लगा है फिजा में भी
बात साल भर की है
होगी मनाही भी कैसे,

टेसू की टहनियों पर कुछ नया और रंगीन सा है
फिजा में उड़ने वाले सारे कण भी तो
हरे, नीले, गुलाबी, पीले, गुलाबी और लाल से ही नजर आ रहे है
बच्‍चों के चेहरे और दूल्‍हों के शेहरों पर भी रंग है

रंगों के और भी तो रंग है
जो कि नई नवेली दुल्‍हनों की हथेलियों, और
दुनिया में आए नए नवेले मेहमानों के संग है,

रंग लगाए प्‍यार का और संग प्‍यार के
कोई न छूटे, न कोई बचे, यह फर्ज मान के
चेहरा किसी का भी रोजाना की तरह से न हो
यह मन में ठान के,

तन भी, मन भी और पॉकेट में रखा धन भी
हम भी, तुम भी, आप भी और जो घरों में छुपे है वो भी
सब एक साथ दिलों को रंगीन बनाएं
और हर आने जाने वाले पर इसको बरसाएं

कुछ इस तरह से होली मनाएं।

Tuesday, February 23, 2010

मुलाकात की चाह ।

एक अंधेरी रात के अंधियारे से
तंहाई में मुलाकात की चाह है
कुछ मिला तो सही और न मिला
तो अपने से मिलने की राह है,

राह बहुत आसान
मगर भटकाव भी कम नहीं है
क्‍योंकि मन मेरा अटका हुआ तमाम चीजों में जो है
जब तक रौनक है और आस पास लोग है
तो पता नहीं चलता,
और जैसे ही अकेला होता हूं तो
डगमगा जाता हूं, थोड़ा कांप सा जाता हूं
इसलिए अपने आप से बचता हुआ और
स्‍वयं को तलाशता मैं

रात के अंधियारे से तंहाई में मुलाकात की चाह रखता हूं।

Friday, February 19, 2010

मन ऐसा क्‍यों चाहता है?

परेशान होना कोई नई बात तो नहीं है,
पर नहीं होना चाहिए, बात तो ये भी सही है,
हालात कुछ ऐसे हो जाते है कि
कुछ भी नहीं सूझता
और हालचाल किसी के कोई नहीं पूछता
इसीलिए तो आज खालीपन सा चारों तरफ है

कोई मिलता ही नहीं अपने जैसा
लेकिन क्‍यों जरूरी है कि हर कोई अपने जैसा ही मिले
मिजाज दूसरा न मिले तो बात करने में मजा ही क्‍या
लेकिन फिर भी ये मन है कि चाहता है बस अपने जैसा

Wednesday, February 3, 2010

हम तो हम हैं।

हम नींव के पत्थर है तराशे नहीं जाते
देखे नहीं जाते दिखाए नहीं जाते
हम जो देते है कोई दे नहीं दे सकता
हम जो सहते है कोई सह नहीं सकता

हम क्‍या है ये तो सब जानते है
लेकिन अहमियत हमारी कम ही जानते है
इस से ज्‍यादा कुछ कहने की जरूरत नहीं
जन्म भी हम है और जान भी।