Friday, September 4, 2009

ऐ जिंदगी,
तू क्‍यों है?
तू क्‍या है?
तू किसकी है?
तू कहां है?
आखिरकार तू है, तो है किसके लिए?
क्या तेरे मायने है?
क्‍यों तेरे कदमों की आहट पे, दुनिया झूमती है?
क्‍यों तेरी चहलकदमी, सर –ए – बाजार है?
क्‍यों सभी को तूझसे इतना प्‍यार है?
क्‍यों तेरे जाने के संगुमान से ही जहां गमगीन और उदास होता है?
क्‍यो सब तुझे अपनाना चाहते है?
तू सबसे और सब तुझसे क्‍या चाहतें है?

समय मिलें तो मुझे जरूर बताना, मैं इंतजार में हूं।