Wednesday, October 22, 2008

जब तुम चलती हो

तो तमन्‍ना मचलती है

जब तुम रुकती हो

तो और भी ज्‍यादा

क्‍योंकि तुम पास आती जाती हो

तुम रूक जाती हो, मैं चलता हूं

कुछ और दिखाई नहीं देता

कुछ और सुनाई नहीं देता

कुछ सूझ नहीं पाता मुझको

सब कुछ बेकाबू लगता है

बात शुरू तो ‌‌अब होती है

जाने ये घटना कब होती है

सूरज भी काम नहीं आता और अंधकार छा जाता है

इन आंखों से सब कुछ ओझल हो जाता है

कभी कभी दीदार तेरा नामुमकिन होता जाता है

सात समंदर से गहरी, ये आंखे भर जाती है

तुम्‍हरे पैरों की आहट से

पायल की प्‍यारी छम छम से

चोली, आंचल के घुंघरूओं की खनक से

यादों से उन वादों से

कसमों से उन बातों से

साथ गुजारे दिन और रातों से

खुशी के निर्मल भावों से

तुमसे मिलने की चाहों से

उन रातों से उन बातों से

साथ में सारे मंजर से

ये आंखें भर जाती है

उम्र गुजरती जाती है

बातें पुरानी जाती है

नई बातों को कहां समाऊं

कहां मैं इन आंखों को खाली कर आऊं

ऐसा शायद हो पाएंधर्म, जाति कहीं खो जाएभाषा पर भी अलगाव न होकोई शहर न हो, कोई गांव न होसब मिलकर दफन करे इन बातों को उन काली जहरीली रातों कोजिसमें कोई नहीं सोने पाया सब ने खोया, कुछ न पायाकिरणों से बात नहीं बनतीबात बनेगी किरण पुंज सेहम से तुम से